ऊना के वार्ड नंबर एक का विशन दास दिव्यांगों के लिए मिसाल बनता जा रहा है। बेशक एक हादसे में विशन दास की दोनों टांगों ने उसका साथ छोड़ दिया हो बाबजूद इसके विशन दास ने हार नहीं मानी और आज अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है। विशन दास पिछले 12 सालों से बिस्तर पर लेटकर ही बैल्डिंग का काम कर रहा है। पैरों ने तो विशन दास का साथ छोड़ दिया है लेकिन विशन दास के हाथों में ऐसा जादू है कि उसके द्वारा बनाये गए लोहे के उत्पादों को देखकर कोई कह भी नहीं सकता की यह किसी दिव्यांग द्वारा बिस्तर पर लेटे लेटे बनाये गए है। जब टूटने लगे हौसले तो बस ये याद रखना, बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते, ढूँढ़ ही लेते है अंधेरों में मंजिल अपनी, जुगनू कभी रौशनी के मोहताज़ नहीं होते…..! शायर की इन्ही पंक्तियों को सच कर दिखाया है ऊना के वार्ड न. एक के विशन दास ने। एक हादसे के बाद विशन दास की टांगों ने उसका हाथ छोड़ दिया लेकिन विशन दास ने अपनी दिव्यांगता को अपने काम में रोड़ा नहीं बनने दिया और बिस्तर पर लेटकर ही लोहे के उत्पाद बनाकर अपने परिवार का पेट पाल रहा है। दिव्यांगता से लड़कर भी पेट पालने वाले विशन दास को दिक्कतें हर राह पर मिल रही है। ऊना के वार्ड न. एक में जहाँ उसका घर है वहां जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है क्योंकि भू मालिकों ने अपनी जमीनों पर तारबंदी कर दी है इसलिए लोहे का भारी भरकम सामान भी उसके परिवार को कंधो पर उठाकर ही घर पहुंचाना पड़ता है। विशन दास जन्म से दिव्यांग नहीं था बल्कि करीब 15 साल पहले तक विशन दास का दिल्ली में वैल्डिंग का बहुत ही बढ़िया काम चल रहा था लेकिन वर्ष 2004 में विशन दास के साथ एक दुखद हादसा घटा। आपसी लेन देन के कारण उसी के कामगार ने उसकी पीठ में गोली मार दी। जिससे विशन दास जीवन भर के लिए दिव्यांग बनकर रह गया। विशन दास की कमर के नीचे के हिस्से ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया और दिल्ली में सारा काम छोड़ छाड़ विशन दास अपने घर ऊना वापिस आ गया। दिल्ली से विशन दास अकेला नहीं आया बल्कि लोहे के उत्पाद बनाने में प्रयोग होने वाला अपना सारा सामान भी ऊना ले आया।