ग्रामीण क्षेत्रों से धीरे-धीरे ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं का नाम इतिहास के पन्नों से मिटता जा रहा है और हमारा पुरातत्व एवं भाषा-संस्कृति विभाग इन सांस्कृतिक धरोहरों को मिटता हुआ देख रहा है। लुप्त होने वाली धरोहरों में एक ऐसा ही लुप्त हो रहा नाम पहाड़ी किलों का है | इस कड़ी में हम पेश कर रहे है जिला बिलासपुर के नयना देवी विधानसभा क्षेत्र के किलों की जर्जर हालत को बयाँ करते कुछ वीडियो एवं अन्य दृश्य सामग्री | आज हम बात करेंगे स्वारघाट के मुंडखर, सतगढ़ और मालौंन किले की जोकि देख-रेख के आभाव में खंडहर बनते जा रहे है | बिलासपुर की सीमा से सटे मलौन किले की बात करें तो तो किसी पौराणिक मान्यता अनुसार गौरखा रेजिमेंट की बटालियन हर चौथे वर्ष किले में बने प्राचीन मंदिर में माथा टेकने के लिए आती है | वहीँ स्वारघाट के सतगढ़ किले की बात करें तो इस किले में सात किले है जिसके चलते इसका नाम सतगढ़ रखा गया था | इस किले के अंदर बाबा बालक नाथ का मन्दिर है और स्थानीय इलाका निवासी रविवार के दिन यहाँ रोट-प्रसाद चढाने के लिए आते है वहीँ धारभरथा स्थित मुंडखर किला भी काफी पुराना है जोकि देखरेख के आभाव में जर्जर और खंडहर बनते जा रहे है | प्रदेश सरकार ग्रामीण क्षेत्रों को पर्यटन के साथ जोड़ने की बात तो करती है परन्तु पर्यटकों को आकर्षित करने वाली ऐतिहासिक चीजों की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है। अगर इन किलों व आसपास की जगहों को टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित किया जाए तो बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे और साथ ही सरकार को भी मुनाफा होगा |